Monday 6 February 2012

प्रेम का परिमाण



 
हो कितना प्रेम का
परिमाण-
भावनाओं की उफनती नदी में
बिना किश्ती व पतवार के उतरजाना
डूब कर लगा लेना जल समाधि-
पाल लेना एक लाईलाज व्याधि-

या
फिर उफनते ज्वार को 
सिर्फ पोरूओं से स्पर्श करना
भावनाओं की गहराई में डूबने के  भय से  
उथले तर्को से करना तिरस्कार

प्रेम का नही होता हैं परिमाण----
प्रेम का होता हैं सिर्फ परिणाम---

Thursday 2 February 2012

ये आंखे

   

क्या कहना चाह रही हैं
ये आंखे -

काला काला काजल भरकर
समन्दर सी गहराई में
क्या प्रियतम को छुपाना चाह रही हैं
 ये आंखे -

सतरंगी दुनिया का ताना बाना बुनती
भरा प्रेम का गागर
बस छलक जाना ही चाह रही हैं
ये आंखे-

अधरो पर जनम जनम की प्यास सजायें
लगी अगन प्रेम की 
क्या खुद को ही जलाना चाह  रही हैं
ये आंखे-

बेकरार हैं दिल
पर न देंगे सहजता से
क्या इसी भ्रम को बनाए रखना चाह रही हैं
ये आंखे-

कानों मे लटके बुंदे उलझे हैं लटो से
कर दे रहे हैं भ्रमर का स्वागत
पर लाज की अभिव्यक्ति करना ही चाह  रही हैं
ये आंखे-

अपूर्व सोंदर्यमयी किसको देना चाह रही हैं ये गुलाब
मैं ही हूं वही लाजवाब
क्या यही कहना चाह रही हैं
ये आंखे ।