Tuesday 30 April 2013

शुभ रात्रि
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सूरज छिप गया जल्दी, रात भी सो गयी  है
यार ने मुझसे वादा किया था आज  आने का

राम किशोर उपाध्याय
  
प्रार्थना
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 मै तो बनकर रहू जाऊ,,तेरा दास
पाऊ स्थान नित   चरणों के पास

है आत्मा प्यासी जनम -जनम की
काटू कैसे मै जनम मरण की फांस

देखू मै नित तुझे ,बुहारी तेरी राह
देता आनंद तू रखता नहीं उदास     

तू ही हरि विष्णु,कभी हर नाम धरे
कभी क्षीर सागर बसे कभी कैलाश 

नहीं जानता योग,न भक्ति का ज्ञान
कण कण में मै तो जानू तेरा रास 

लगी बस एक ही टेर,जीवन हो धन्य
द्वार खुला है विराजो मेरे घनश्याम

कभी राम कहूँ  मैं कभी पुकारू श्याम
आ ही जाओगे घट में,है मुझेविश्वास 

अमरता नहीं,बस रहे तेरा ध्यान
अंतिम क्षण में आँखों में तेरा वास 

रामकिशोर उपाध्याय 

!!!! चांदी की थाली में सोने का चंदा !!!


चांदी की थाली में सोने का चंदा 
दूर से सैय्य़ा फैंक है मोपे फंदा

सहेली दे ताना मै  हुई बावरिया
दिल उसे बेच आई कैसे मै मंदा

भाई करे शक, बाप  है परेशान
गली  में घूमें पीछे मेरे वो बंदा

बहन करे जलन,माँ देती घुड़की
वो कभी कहे रानी  कभी रम्भा

मेरे दिल की हालत वो ही जाने
डोले प्रेम नगरिया तज के निंदा

अपनी इस चाहत में  लुट गई हूँ
देकर अपना सबकुछ भला चंगा

दिन में देखूं सपने,जागू रात में
तोड्दू पिंजरा और उडा दूँ परिंदा  


चांदी की थाली में सोने का चंदा 
दूर से सैय्य़ा फैंक है मोपे फंदा

राम किशोर उपाध्याय 

Monday 29 April 2013


The change in sequence of letters changes the meaning,,,,,,,,
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Satta ki  file aur Bhagwan ki di life me hote akshar saman,
Imandaari ki tippni aur Bhagwan  ki lathi  hoti hai bejuban

File me coma lagao to arth badle, life coma me hota ....................bejan
Mudra dekhkar mudra badalti satt, vo mudra badle to bane jeevan mahan

सत्ता की फाइल और भगवान की दी लाइफ में होते अक्षर समान
ईमानदारी की टिप्पणी और भगवान की लाठी होती  है ...बेजुबान

फाइल में कोमा लगाओ तो अर्थ बदले, लाइफ कोमा में होता ..बेजान
मुद्रा देखकर मुद्रा बदलती सत्ता, वो मुद्रा बदले तो बने जीवन महान

रामकिशोर उपाध्याय

Sunday 28 April 2013

मै
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उंगलियों  से चुनता अपने ही पोरुओं पे लगे दुःख के शूल
पलकों से उठता अपने होठों पे लगे आनंद के फूल
विद्रूपता लिखने पर विस्मित होता
विदूषक बनाने  पर रुदन करता
अपने ही गढ़े चरित्रों के अभिनय पर हँसता
शिवि की भांति स्वयं का विच्छेदन करता
दधिची सा हड्डी का वज्र बनाकर स्वयं से युद्ध करता
स्वप्नों में  अनुतरित प्रश्न के उत्तर खोजता
खुली आँखों में स्वर्ण स्वप्न ढूंढता,रहस्य समेटता
शांति पाने दूर तक चला जाता
फिर मुड के जीवन के कोलाहल में लौट आता
स्वयं को तलाशता
कभी ईश में , कभी शीश में -----
मन की सीढ़ियों से पाताल  लोक  में उतर जाता
बटोरने लगता शीशे के टुकड़े -आइने की किरचे
जोड़ने पर दिखता हूँ अपना ही बिम्ब
अपनी ही आत्मा के सामने नि:वस्त्र
भयमुक्त,जीवन मुक्त और वासना मुक्त
माँ की कोख में पड़े पिता के बिंदु जैसा
मै ---------------------------------

राम किशोर उपाध्याय

Saturday 27 April 2013



जब से तूने ख्वाबो में आने से मना कर दिया
मै तब से अपने घर में दिया बुझाता ही नहीं 

राम किशोर उपाध्याय  

उन्वान - 39 'अक्स'

आइने भी टूट जाते है ये मेरा अक्स देखकर
जानम तुम  मुझे यूं प्यार से ना देखा करो
है किस्मत का खेल शुरू और बिछी है बिसात 
पलटते हुए पांसों को यूं गौर से ना देखा करो   

aaine bhi tut jate hai ye mera aks dekhkar
janam tum mujhe yun pyar se na dekha karo
hai  kismat ka khel shuru  aur bichhi hai bisat
palatate huye panso ko yun gaur se na dekha karo.

Ram Kishore Upadhyay
उन्वान - 'परछाई '


जहाँ जाऊ  वही चले  मेरी परछाई
कभी सजन लगती ,कभी हरजाई
कभी होती छोटी,कभी बढे लम्बाई
पर कहते है  दुःख में करे बेवफाई    

रामकिशोर उपाध्याय


ख़ुशी ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
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ख़ुशी, कभी दबे पांव  खुली खिड़की से आती
और शोर करती बंद  दरवाजे से चली जाती

ख़ुशी ,कभी बयार बनके मन महका  जाती
और  भुजंग को चन्दन से दूर भगा जाती

ख़ुशी ,कभी सीप के मुख में गिर मोती बन जाती
और गरम तवे पर गिर जलकर भाप बन जाती

ख़ुशी ,कभी सागर की लहरे बन तन  भिगो जाती
और गर्मी में लू बनके बदन का पानी सुखा जाती   

ख़ुशी ,कभी बच्चो की किलकारी से आंगन सजा जाती
और बच्चो  के कंधे पर सवार होकर अर्थी बन जाती

ख़ुशी ,कभी सफलता बन गर्व से सीना फुला जाती
और शिखर से गिरने पर बुलबुला  सा   फूट जाती

ख़ुशी ,कभी बिना  पांव परबत पार करा जाती
और सपाट सड़क पर कई ठोकर खिला जाती

ख़ुशी, कभी प्रेमिका बन सुनहरे सपने दिखा जाती 
और पत्नी बन के यथार्थ से जूझना सिखा जाती

ख़ुशी, कभी भी हो, कही भी हो,  ख़ुशी ही कही जाती
और ख़ुशी गम  को आंचल में छिपा  ख़ुश कर जाती

राम किशोर उपाध्याय
27-4-2013

शिव गोरक्ष

देवो के देव महादेव का वह पुत्र व पहचान है
धर्म के शिखर पर आज भी गोरक्ष महान हैं  (१)

गूंजता  देश के हर घर में बस एक ही गान है
योग ही श्रेष्ठ सबसे, वह ज्ञान भी है,वह विज्ञान है (२)

चलो संभलकर राह में ,जीवन नहीं आसान हैं
मार्ग उत्तम मध्य ही,उनकी शिक्षा का अवदान है (3)

हिमालय से ऊँचा  कद ,वह वेद  भी है, वह  बाइबिल कुरान है
झुक गया हर शीश उसको , फिर भी रहा न जरा अभिमान है (4)

बांटता ज्ञान वह नित नया ,बहता निर्मल जल सामान है
शेष मानवता का दूत, वह विश्व शांति का प्रतिमान है       (५)

रंक  हो, राजा हो ,सभी को शिष्यत्व का अवसर समान है
ना कोई ऊँचा ,ना कोई नीचा,हम सब उसी की  संतान है  (६)

वह काल में,अकाल में, वह निष्प्राण में प्राण है
युग सृष्टा है युग द्रष्टा है,वह शक्ति का विहान है (७)

देश के, काल के बन्धनों से मुक्त,वह भूत भी, वर्तमान है
विश्व की चेतना वह , जड़ भी है,और गतिमान भी है (८)

आओ मिलकर नमन करे वह देव भी है, वह भगवान है
कर रहा हर दिशा प्रकाशित,वह तो मेरा गोरक्ष महान है (९)

राम किशोर उपाध्याय
२७.4.२०१३


Thursday 25 April 2013



कुछ धूप दे,कुछ छाँव दे,कुछ नया अहसास दे
जी संकू मै तेरे बिन भी ,ऐसा कुछ विश्वास दे

राम किशोर उपाध्याय 


वजूद मिट रहा है
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लहरों पे चाँद हिल रहा  है 
शायद कोई बुला रहा है
    
इन आँखों में एक ख्वाब  हैं 
जो बिन पंखो के उड रहा है

तपन सूरज की अब कहाँ  है
आसमा चादर तान रहा है

आज तो वस्ल की रात है
तारा भी न कोई सो रहा है

खामोशी शोर कर रही है
मानो वजूद मिट रहा है

Wednesday 24 April 2013


काज़ल किसी कोने में बचाके रखना
कभी आंसू छिपाने के काम आयेगा

रामकिशोर उपाध्याय
24-4-2013



तन्हा रातों  की ईंटों में लगा हैं जुस्तजू   का गारा
पलकों के  बिछे पावड़े  ,है  बाजुओं का  बिछोना


जब मंजिल मिल ही गयी,फिर अब और कहाँ जाना
ठहर जा वक़्त!  बड़ी  मुश्किल से बना यह  ठिकाना

राम किशोर उपाध्याय
24-4-2013

Tuesday 23 April 2013

!!!! लुट गया हैं चमन मेरा ये खुशबू बांटते- बांटते !!!!


डूब गया है दिल मेरा तेरा अक्स देखते -देखते
लुट गया हैं चमन मेरा ये खुशबू बांटते- बांटते 

आने से तुम्हारे मानो  मंजिल आ गयी थी पास में
कैसे भूलूँ वो  हसीन लम्हे जो गुजरे तेरे आगोश में
                                                     काटी है सदियाँ  कई  रातों में  जागते -जागते
                                                     लुट गया हैं चमन मेरा ये खुशबू बांटते- बांटते (1 )

कहते थे दिल मेरा ,तुम्हारी ही  अमानत
हमारे लिए ले लेंगे ज़माने से भी अदावत 
                                                     रूठ  गयी तू मुझसे क्यूँ  इतना चाहते -चाहते
                                                     लुट गया हैं चमन मेरा ये खुशबू बांटते- बांटते (2 )
फिर आज बादल घिरे, फिर छाई  तन्हाई
दिल में छिपाकर जी रहा हूँ तेरी  बेवफाई
                                                      कहाँ खो गए वो दिन और वो  प्यारी -प्यारी राते
                                                       लुट गया हैं चमन मेरा ये खुशबू बांटते- बांटते  (3)

हो जायेंगे रुखसत हम जहाँ से बस तेरा नाम लेकर
उतर जाता है ज्यूं मांझी भंवर में अपनी नांव खेंकर 
                                                        मिलेंगे अब बहिश्त में बस  तेरा दर  ढूंढते -ढूंढते 
                                                        लुट गया हैं चमन मेरा ये खुशबू बांटते- बांटते   (4 )  


डूब गया है दिल मेरा तेरा अक्स देखते -देखते
लुट गया हैं चमन मेरा ये खुशबू बांटते- बांटते 


( यह गीत लिखने का प्रयास है, अच्छा लगे तो प्रशंसा और ठीक न लगे तो सुझाव की अपेक्षा रहेगी)

राम किशोर उपाध्याय 
23-4-2013

Monday 15 April 2013


कोई खरीदार ही  मिल जाये !!!!
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बादलों से ही चाँद  निकले  ये  जरुरी तो  नहीं
आरजू  से ही खुदा मिले  ये जरुरी तो  नहीं

बेशक हम घर से बड़े ही मायूस से निकले हो
आगे बढ़कर थाम ले कोई हाथ ये  जरुरी तो नहीं

अक्सर मिलते  है जख्म पे जख्म बेवफाओं से
अपनों से भी मरहम मिल जाये ये जरुरी तो नहीं

अपनों की नफरत का रखता है हर कोई हिसाब
अजनबी से प्यार मिल जाये ये जरुरी तो नहीं

दिल बेचने को फिरता हूँ सरे बाज़ार आजकल
कोई खरीदार ही  मिल जाये  ये जरुरी तो नहीं  

समंदर में खाती है हिचकोले लहरों पे कई कश्तियां
हर एक को साहिल मिल ही जाये ये जरुरी तो नहीं

राम किशोर उपाध्याय
१५.4.२०१३

Thursday 11 April 2013

 हैं बेताब हर इन्सान अपने निशां  छोड़ने को यहाँ
 मै मिटाता रहा निशां कदमो के जो छूटे यहाँ वहां

राम किशोर उपाध्याय
11/04/2013

दिए को ना बुझाया करो  गुमराहो को जरुरत होगी
दिल को ना जलाया करो हमराहों को जरुरत होगी

राम किशोर उपाध्याय
11*04*2013
गुनाह का अक्स

उठा है फिर से आज दर्द का तूफान सोये हुए घावों से   
आयी  है फिर से आज घुंघरू की सदां खोये हुए पावों  से

चांदनी में झुलसते ही रहे वो मेरे मासूम से जज्बात
मिला है फिर से आज मोहब्बत का पैगाम खुश्क लबों से     

यहाँ डगमगाती  रही कश्ती बेख़ौफ़ उस समंदर में 
आया है फिर से आज साहिल का वादा उन नाखुदाओं से 

मिरा  दिल डूबने लगा और रूह पनाह मांगने लगी 
उभरा है फिर से आज  गुनाह  का अक्स उन निगाहों से  

राम किशोर उपाध्याय
11.04.2013

Tuesday 9 April 2013


राह के रोड़े
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यूँ राह चलते ---
किनारे पड़े कंकडो को पैर मत मारों
बेशक वे तुम्हारी राह का रोड़ा हो
अगर लौटते समय ----
उसी राह पे पास से गुज़रती
नदी का बेलगाम पानी चढ़ आया
तो वही कंकड़
तुम्हे घर की राह दिखायेंगे !!!!!

राम किशोर उपाध्याय
९.४.२०१३

Wednesday 3 April 2013

मेरे खुशनुमा चहरा देख लोग समझते है कि भरा पड़ा होगा माल असबाब ,
देखो, है पास एक दिल, कुछ कागज़ के टुकड़े ,पेंसिले और शब्द बेहिसाब। 

राम किशोर उपाध्याय
4-4-2013
मै ढूंढता रहा उन्हें उन राहों  में हो बदहवास,
जो अक्सर आती थी घूमती हुई मेरे ही पास।

राम किशोर उपाध्याय

Tuesday 2 April 2013

तो आंसू भी कभी खारा ना होता !!!!


आँखों में ये सागर गहरा ना  होता,

तो आंसू भी कभी खारा  ना होता.

बहुत ख्याब देखे तेरे कांधे पे सर रखके 
सजायी डगर तारे आसमान से तोड़के 
तेरी बेवफाई से  डूब ही जाती कश्ती  
गर एक तिनके का सहारा   ना होता (१)


आँखों में ये सागर गहरा ना  होता,
तो आंसू भी कभी खारा  ना होता.

बहुत देर तक हम साथ चले 

नंगे पांव जब तक साँझ ढले
खौफ निगाहे तो  मार ही डालती 
गर उम्मीदों ने हमें पुकारा ना होता (२)

आँखों में ये सागर गहरा ना  होता,
तो आंसू भी कभी खारा  ना होता.



कुछ गीत गुनगुनाये,कुछ शिकवे किये,
हर गुनाह को सर आँखों पे रख लिए ,
लील ही जाता  मुझको ये भंवर सुहाना,
गर जिंदगी का बुलंद सितारा ना होता(३)

आँखों में ये सागर गहरा ना  होता,
तो आंसू भी कभी खारा  ना होता.

Monday 1 April 2013

हर छोटी ख़ुशी को लगाओ गले !




हर छोटी ख़ुशी को लगाओ गले !

मुट्ठी में  रेत की तरह वक़्त फिसल जायेगा,
नहीं कल था और होगा,गर आज संभाला न जायेगा,

सूरज की रोशनी को लपकने को बेताब है चाँद,
आज दिया न जलाया तो एक तारा भी ना टिमटिमायेगा,

नींद में खो जाएगी जवानी और वो हसीं पल भी,
गर ना संजोया इन्हें पलकों में तो ख्याल में भी ना आयेगा ,

हर अमल पर कायम है तेरा मुस्तकबिल ,
गुमराह हो गए  तो वो अज़ीम मुकाम ख्याब में भी ना आवेगा,

हर ख़ुशी मुनस्सर है तेरे जूनून की बुलंदी पे,
वक़्त की पाबंदी हो तो कामयाबी का लम्हा कभी ना जायेगा,

पूरी हो हर तमन्ना, ये हर किसी को मयस्सर कहाँ,
हर छोटी ख़ुशी को लगाओ गले तो रंज पास से भी ना गुजरेगा .

राम किशोर उपाध्याय
02.04.2013

जीना है तो मेरे साथ चलना सीखो!


उसने
मेरा हाथ पकड़ ही लिया ....सडक से गुज़रते हुए ---
वह सडक भी नहीं
थी एक पतली सी पगडण्डी -
जिसे स्वयं एक -एक कदम से गढ़ा था
मै बड़ी ख़ामोशी से
सर झुकाए होले -होले
बढ़ रहा था अपनी मंजिल की तरफ
वह मेरी धीमी आहट  से चोंका
लोग सरपट घोड़े की माफिक दौड़ रहे थे
हंटर लहराते चले जा रहे थे
कई लोग उनके घोड़ों की लाते भी खा रहे थे
उसने उनकी ओर  दृष्टि भी नहीं डाली
मैंने अपना अपराध जानने की जिज्ञासा व्यक्त की
उसने बड़े जोर से आंखे तरेरी
एक खडूस बॉस की तरह
मानो प्रश्न ने उसकी अधिकारिता को तारतार कर दिया हो
मै अवाक् था,विवश था
बिन अपराध के मेरी गति को बंद होने पर  
मैंने  आक्रोश व्यक्त किया
उसने करवट बदली ---
जानते नहीं मै कौन हूँ ?
मै समय हूँ !
मै आज का समय -
और मुझे तुम्हारे जैसे लोग--
कतई पसंद नहीं है -
जीना है तो मेरे साथ चलना सीखो!

राम किशोर उपाध्याय
1-4-2013