Monday 22 July 2013

चंद  अशआर --------------

दिल बोझिल ग़म से क्या हुआ अश्क बहने  लगे 
ये भी फरेबी दोस्त की तरह हमको दगा देने लगे

एक गुमनाम  पहचान लेकर बज़्म में आया हूँ 
तेरे  टूटते तिलस्म का मंजर जो देखना हैं मुझे

रोज बुनती है मेरी आँखे तुझे लेकर कई सपने  
तेरे चश्म से उन सपनों का अम्बर जो देखना है मुझे 


रामकिशोर उपाध्याय   

No comments:

Post a Comment