Saturday 7 September 2013

मैं एक आकाश हूँ 
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मैं एक बहती नदी हूँ 
चट्टान आने पर राह बदल के आगे बढ़ी हूँ 

मैं एक बहता झरना हूँ 
शिशिर आने पर चट्टानों से बह निकला हूँ 

मैं एक सूरज हूँ 
निशा आने पर अगले दिन फिर चमका हूँ

मैं एक सुविचार हूँ
आलोचना आने पर परिपक्व हो फैला हूँ

मैं एक मंजिल हूँ
मील आने पर अगले पत्थर को चली हूँ

मैं एक गागर हूँ
ग्रीष्म आने पर और ठंडी हो प्यास बुझाती हूँ

मैं एक बादल हूँ
हवा आने पर धरा पर घनघोर बरसता हूँ

मैं एक विषय हूँ
अवरोध आने पर तेजी से खुद बदलता हूँ

मैं एक पवन हूँ 


ऋतु आने पर भिन्न भिन्न गति पकड़ता हूँ

मैं एक ऋतु हूँ
सूरज आने पर अवनी के मेहंदी रचती हूँ

मैं एक आकाश हूँ
परिवर्तन आने पर सबको सहेजकर रखता हूँ

रामकिशोर उपाध्याय

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