Sunday 22 December 2013

मेरे अहसास 
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चाँद से 
सलोने अहसास 
एक सूरज से 
गरम हाथों के
एक सितारों सी
महफ़िल में सजे
मेरे दोस्तों जैसी
जब भी चले
वो साथ ही थे
नभ पे
नभ के नीचे
ना धूप से दुबके
ना चांदनी में छिटके
ना बारिश में बहे
बस दिल से निकलकर
हाथ से होते हुए
तुम्हारे करीब आये
जब बढ़ाया नरम
हाथ अपना
दोनों हाथ जोड़कर
सर झुकाकर
द्वार पर आपके
खड़े हो गए
मेरे चाँद से सलोने
अहसाह ….........
तुम्हारी छाया में
सर छिपाने को ….....

रामकिशोर उपाध्याय
22.12.2013

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