Friday 24 January 2014

ईश्वर की इच्छा (लघु कथा )
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कोहरा बहुत छाया हुआ था।आदमी को अपना हाथ भी नहीं दिखाई दे रहा था।शरीर ही नहीं रुह भी कांप रही थी।नौकरी के लिये निकलना राजन के जरूरी था।अस्पताल में उसके मरीज लाइन में खड़े होकर प्रतीक्षा कर रहे थे। राजन ने अपनी मेहनत और लगन एवं सहृदयता से अपने मरीजों का विश्वास ही प्राप्त नही किया अपितु अपने सहयोगियों व अस्पताल प्रबंधन का भी विश्वास हासिल किया। वह हमेशा ड्यूटी के समय से लगभग एक घंटा पहले निकलता था ताकि लास्ट मिनट की भागमभाग से बच सके.

वह अपने स्कूटर से जा रहा था कि अचानक उसे सड़क के किनारे एक युवक और एक युवती एक दूसरे से लिपटे पड़े दिखाई देते है।वह रुक गया ।देखा तो दोनों बेहोश हैं।पल्स उनकी बहुत धीरे धीरे चल रही है।वह अस्पताल में फोन करने के लिये अपनी जेब में हाथ डालता है तो पता चला कि उसका मोबाइल फोन घर पर ही छूट गया है।एक पल के लिए वह परेशान हो जाता है,परन्तु अगले ही पल वह दोनों को स्वयं ही अस्पताल में ले जाने का फैसला करता है। सड़क सूनी थी।वैसे भी वह भीड़ वाले रास्तों का उपयोग नहीं किया करता था।

समय कम था,उसने पहले लड़की को किसी प्रकार अपने स्कूटर ने बिठाया और जाकर इमरजेन्सी में डाक्टर के हवाले कर लडके को लेने भाग गया और आधे घंटे में उसे भी ले आया। तबतक लड़की का इलाज शुरू हो चुका था और वह हरकत में आ चुकी थी। दूसरे डाक्टर ने लड़के का इलाज शुरू कर दिया।

राजन फिर भी समय से अपनी ओ पी डी में था। बीच बीच में वह उन दोनों का हालचाल लेता रहा। दोनों अगले दिन स्वस्थ होकर डिस्चार्ज हो गये और अपने घर लौट गए। राजन भी भूल गया। करीब एक महीने बाद एक दिन शाम को अस्पताल से घर पहुँचा तो देखा कि एक लड़का लड़की उसके ड्राइंग रुम मे उसका इंतज़ार कर रहे थे। वह उनको पहचान नहीं पाया।उन्होंने राजन के पैर छुरे और बताया कि उन्हीं दोनों की प्राणरक्षा राजन ने की थे।वे बेहोश होने के कारण राजन को नही पहचान पाये। उन दोनों की शादी होने वाली थी और उसी खरीदारी करने वहां आये ।कुछ लोगों ने यह भांप कर उनके पीछे लग गये।उनकी गाड़ी और पैसे छीनकर उन्हें बेहोश कर रात के बारह बजे के उस सुनसान सड़क के किनारे फेंक गए,यही समझकर कि इस रास्ते से कोई आता जाता नहीं है। काश!आप न आये होते तो वे मर ही गये होते।आप डाक्टर ही नहीं भगवान है। यह सब वह लडका एक सांस में कह गया। उसके बाद लड़की ने कार्ड निकाल कर राजन को देते हुए कहा कि यदि वे उसके विवाह में नहीं आये तो वह विवाह नही करेगी। राजन ने हां कर दी।वे दोनों अपनी कृतज्ञता ज्ञापित कर संतुष्ट भाव से लौट गये।

राजन अपनी दिनचर्या में लीन हो गया।उनके विवाह की तिथि वह भूल गया। विवाह के दिन शाम को अचानक याद आया। विवाह स्थान दो सौ किमी था। कैसे पहुंचे,सोचकर परेशान हो गया।एकबार सोचा कि काम की अधिकता से भूल गया,कह दूंगा,मगर अगले पल सोचा कि वह नहीं गया तो कहीं विवाह ही न करें वे लोग। उसनें टेक्सी बुलाई और निकल पड़ा। फेरों का समय निकल गया था परन्तु विवाह मंडप में सन्नाटा था।उसने किसी से पूछा कि शादी हो गयी।उत्तर मिला लड़की का भाई अभी आनेवाला हैं,तभी होगी। राजन दौड़ कर नेहा (लड़की)के पहुंचा। नेहा को उसने गले लगाया और बिना देर किए मंड़प में ले गया।शहनाई बज उठी।

नेहा विवेक (लड़का) के साथ सप्तपदी ले रही थी और राजन सोच रहा था कि ईश्वर कितना महान है जिसने उसने दो बार नेहा और विवेक का जीवन दो बार बचाने का उसका प्रयोग किया,एक बार उनका दैहिक जीवन और दूसरे उनके प्रेम के जीवन को। राजन के चेहरे पर ईश्वर के प्रति कृतज्ञता का भाव था और वह एक प्यार भरा भाई -बहन का रिश्ता लेकर लौट रहा था।
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रामकिशोर उपाध्याय

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