Friday 11 July 2014

बस तुम

बस तुम 
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सरल सा 
चेहरा 
उलझती लटों पर 
झूलते पानी के मोती 
होठों पे
ठहरी तबस्सुम
आँखों से
टपकता नूर
बदन से फूटती
मादक गंध
रात के सन्नाटें में गिरती
वो शबनम
चटकती कलियों से
बहकती खुशबू
थी जिनसे आबाद जिंदगी कल भी
और है आज भी
वो तुम ही तो हो ....
बस तुम .............|
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रामकिशोर उपाध्याय

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