Friday 22 August 2014

एक गीतिका
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नाम बड़े और दर्शन छोटे,व्याप्त यही परिभाषा,
ये दुनिया ऐसे ही चलती,,,बस तू देख तमाशा |
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कागा हुए कोयल और घर में श्वान बने है शेर,
कभी युद्ध मध्य कायर बोले है वीरोचित भाषा|
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कल जो सच था आज वही है झूंठ जगत में,
वासना करे शांत अब तो धर्म की जिज्ञासा |
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कुत्ता खाए मालपुआ और आदमी सोये भूखा,
अमीर चखे सत्तामृत और गरीब सहे हताशा |
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ज्ञानी भये अज्ञानी और अज्ञानी बने है विज्ञानी,
चाटुकार करे रोज सिंहासन की तीव्र अभिलाषा
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रामकिशोर उपाध्याय

Tuesday 19 August 2014

समय











अंतिम घड़ी में
पिता ने पुत्र को निकट बुलाया
एक पुड़िया देते हुए कहा
पुत्र, इसे संभालकर रखना
यह हमारे पूर्वजों की निशानी है
पुत्र ने जेब में रखना चाहा
पिता ने सोचा कि वह पुत्र को टोके
पुत्र एक बार इसे खोलकर तो देखे ?
पुत्र अंतिम संस्कार तक रुका
फिर खोलकर देखा
पुड़िया तो खाली है
परन्तु उसमे तीन अक्षर लिखे थे
जिनमे पूरा ब्रह्माण्ड समाया
अनमोल अक्षर थे
'समय'  
हां समय ......|
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रामकिशोर उपाध्याय



Mera avyakta: मुंडेर पर ....

Mera avyakta: मुंडेर पर ....: मन पुलकित हो उठा लगा के वीणा के सोये तार जग गए जब उसने कहा तुम्हे पहले भी कहीं देखा है पहली ही मुलाकात में उस जगह घने पेड़ ...

मुंडेर पर ....













मन पुलकित हो उठा
लगा के वीणा के सोये तार जग गए
जब उसने कहा
तुम्हे पहले भी कहीं देखा है
पहली ही मुलाकात में
उस जगह घने पेड़ थे
छाँव थी घनी
पीपल की चंचल  पत्तियों से
सूरज लुकछिपकर
अपने दृग फाड़े देख रहा था .....
यह दृश्य ...अपूर्व
पर वह बोलती ही जा रही थी
आकाश सिंदूरी हो चला
पुरुष ने सोचा के योषा की आँखों में
दिवस ढलने का प्रभाव परिलक्षित हो रहा है
योषा की आँखों में लाल डोरे तैरने लगे थे
वह कहने लगी
जाने से पूर्व कुछ कहोगे नहीं
क्या कहूँ ?
जब -जब तुम दर्पण देखोगी अपलक
एक छवि निर्बाध वार्ता करेगी
और होगा एक निवेदन
जिसे शब्दों में व्यक्त करना कठिन है
और तुम खुद ही कह उठोगी
के ये निगोड़ी आंखे बहुत बोलती है क्यों ?
परिंदों अपने घोंसले को लौटने लगे
और शोर बढ़ने लगा
मुंडेर से उतरकर दो साए आंगन की ओर बढ़ने लगे थे .....
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रामकिशोर उपाध्याय