Thursday 20 November 2014

ग़ज़ल

एक गीतिका *************
"""
खिल गए फूल से याद इक आ गई,
शहद की बूंद सी जीभ पर छा गई |
*
नैन भी शोख थे,बात भी मदभरी,
प्यार के मांगने की अदा भा गई |
*
चाल में मस्तियां,गात में बिजलियाँ,
छिन गयी चैन,वो गज़ब सा ढा गई |
*
फूल से वह उठी,चाँद पर जा खिली,
ख्वाब की बात जैसे जमीं पा गई|
*
टूटने से बची वो सुमन की कली,
भ्रमर सेना कहीं से तभी आ गई |
**
रामकिशोर उपाध्याय
17.11.2014

No comments:

Post a Comment