Saturday 29 November 2014

रेत में तैरते....ग़ज़ल


{बहर =२  १ २, २ १ २,२ १ २ ,२ १ २, २ २ २}
पदांत = देखे 
समान्त = अर 
** 
रेत में तैरते बरफ के कुछ समन्दर देखे,
चाँद को घूरते ख्वाब के कुछ बवन्डर देखे |
**
जीत होती रहे यह सदा संभव हुआ हैं कब,
धूल को चाटते एकदिन सब सिकंदर देखे |
**
जो नचाते कभी अंगुली पर सभी शेरों को   
आजकल तो भिक्षा मांगते वो कलंदर देखे |      
**
पुन्य का लोभ है दान भी सब दिखावा है ये,
ढोंग पर चल रहे मस्जिदें और मन्दर देखे |
**
मजलिशें रो रही गालिबों और मीरों को अब,
शायरों के भेष में नये आज बन्दर देखे | 
**
न्याय शासन खड़े सर झुकाके सभी अर्थ समक्ष,
मौज करते कभी चोर भी जेल अन्दर देखे |
**
माघ के माह में फलक पर आम ये मंजर है,
ऊन  की चादर खरीदते सूर्य चन्दर देखे |
**
रामकिशोर उपाध्याय 

 





No comments:

Post a Comment