Thursday 2 July 2015

एक ग़ज़ल

ग़ज़ल 
***
ठहरी डगर को फिर घुमाकर देखना
उजड़े शहर को फिर बसाकर देखना
*
गर चाहता है जिंदगी में तू अमन
कुछ भूल जा,कुछ को भुलाकर देखना
*
सागर किनारे प्यास बुझती है कहीं
कुछ बादलों को घर बुलाकर देखना
*
देगा दुआ तुझको,,मिलेगी बस ख़ुशी
भूखे बशर को कुछ खिलाकर देखना
*
मैं भूल सकता हूँ तुझे मुमकिन नहीं
तुम इस फ़साने को भुलाकर देखना
*
गर चाहता है रब मिले तुझको कभी,
दिल से अना,नफरत मिटाकर देखना
*
दुनिया चली है प्यार से ही आजतक
इक प्यार की शम्मा जलाकर देखना
*
रामकिशोर उपाध्याय 

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